भगवान राम की अनन्यत उपासक शबरी ने अपने आराध्य को जूठे बेर खिलाए थे। गौरतलब है कि इसका प्रसंग रामायण, भागवत पुराण, रामचरितमानस, सूरसागर, साकेत जैसे कई ग्रंथों में आपको देखने व पढ़ने को मिलेगा।
शबरी कौन थीं?
शबरी जो है वह भील जाति से ताल्लुक रखती थीं और इस जाति में शुभ कामों को करने से पहले पशुओं की बलि दी जाने की परंपरा थी। शबरी बचपन से ही भगवान राम की भक्त थीं। सुबह-शाम वह अपने राम जी के लिए पूजा-पाठ और व्रत रखा करती थी। जब शबरी का विवाह तय हुआ तब बकरों और भैसों को बलि के लिए लाया गया और उन पशुओं की जान बचाने के लिए शबरी ने विवाह ना करने का फैसला लिया और वह घर से बाहर निकल गईं।
रास्ते में शबरी को कई आश्रम दिखाई दिए लेकिन सबने शबरी को अपने आश्रम में रखने से मना कर दिया लेकिन ऐसे में वहां मतंग ऋषि आए और शबरी से उनका परियच पूछा। काफी सोच विचार कर उन्होंने उसे आश्रम में आने की अनुमति दे दी। शबरी कुछ ही दिनों में अपनी राम भक्ति और अच्छे व्यवहार से वहां उस आश्रम में सबकी प्रिय बन गईं। कई साल शबरी ने मतंग ऋषि की सेवा अपने पिता के समान की, लेकिन एक दिन मतंग ऋषि के दुर्बल शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया। हालांकि मरने से पहले मतंग ऋषि ने शबरी को आशीर्वाद दिया था कि उन्हें राम के दर्शन ज़रूर होंगे।
शबरी ने भगवान राम को क्यों खिलाए थे जूठे बेर –
कई साल बीतते चले गए… शबरी हर दिन भगवान श्री राम के इंतज़ार में रास्ते पर फूल बिछाती और भोग का इंतजाम करके रखती। वह यह सब बस इसी सोच में करती भगवान श्री राम ना जाने कब पर एक दिन ज़रूर उन्हें दर्शन देने आएंगे।
एक दिन की बात है जब भगवान श्री राम अपनी पत्नी माता सीता की खोज में मतंग ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। वहां मौजूद एक ऋषि ने श्री राम को बिठाया और शबरी को आवाज लगाई और कहा कि “तुम जिन भगवान का दिन-रात पूजन करती हो वह खुद आश्रम पधारे हैं… आओ, और मन भरके राम जी की सेवा करो…”
फिर क्या भगवान श्री राम को अपने सामने पाकर वह उन्हें निहारती रहीं… कुछ देर बाद उन्हें स्मरण हुआ कि उन्होंने अपने भगवान को भोग नहीं लगाया है, इसीलिए वह जगंल जाकर कंद-मूल और बेर लेकर वापस आश्रम लौटी और कंद-मूल तो उन्होंने राम जी को दिए, लेकिन बेर खट्टे ना हो इस डर से उन्हें देने का साहस नहीं कर पाईं।
अपने भगवान को मीठे बेर खिलाने के लिए शबरी ने उन्हें चखना शुरू कर दिया… अच्छे और मीठे बेरों को राम जी को देने लगी और खट्टे बेरों को फेंकने लग गई। भगवान राम अपने भक्त शबरी की इस भक्ति को देख मोहित हो गए, लेकिन राम जी के भाई लक्षमण उन्हें देखकर अचंभित होकर अपने बड़े भाई राम से यह सवाल कर बैठे कि “भैया आप झूठे बेर क्यों खा रहे हैं…” इस बात पर भगवान राम ने लक्षमण को समझाया कि यह जूठे बेर शबरी की भक्ति हैं और इसमें उनका प्रेम है। बस तभी से शबरी और भगवान राम की यह कहानी ‘शबरी के बेर’ नाम से प्रसिद्ध हो गई