हमारे हिंदू धर्म में सूतक काल का भी अपना खास महत्व माना जाता है। सूतक काल को बहुत से लोग अशौच काल भी कहते हैं।
सूतक काल के बारे में आप अगर ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं, क्योंकि वेद संसार आपको इसी खास काल सूतक के बारे में बताने जा रहा है।
दरअसल, सूतक काल 2 तरह का होता है –
पहला : बच्चे के जन्म लेने के बाद लगने वाला सूतक और
दूसरा : मृत्यु के पश्चात लगने वाला सूतक।
आपने देखा होगा कि जब परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उस कुल में कुछ दिनों के लिए सूतक काल लग जाता है। वहीं, हमारे शास्त्रों के अनुसार ब्राम्हण को 10 दिन का, क्षत्रिय को 12 दिन का, वैश्य को 15 दिन का और शूद्र को पूरे 1 महीने का सूतक काल लगता है पर हां, कुछ खास परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि दस (10) दिनों में ही हो जाती है, जिसे शारीरिक शुद्धि कहा जाता हैं और इसके पश्चात किसी भी तरह का छुआछूत दोष नहीं रहता तथा त्रयोदश संस्कार के बाद पूर्णशुद्धि हो जाती है।
कहते हैं, परिवार में देवताओं की पूजा-आराधना इसके बाद ही करने की परंपरा है, जिसमें सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा अथवा सत्यनारायण कथा का श्रवण अनिवार्य रूप से करने की परंपरा है।
ध्यान रहे कि किसी कारण से सूतक काल दस दिनों के अंदर ही परिवार के किसी और सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पहले सदस्य की मृत्यु तिथि के अनुसार ही दूसरे सदस्य के सूतक का भी समापन हो जाता है। वहीं, हमारे शास्त्रों की मानें तो पहले से लगा हुआ सूतक दसवें दिन की रात्रि के तीन प्रहर तक किसी की भी मृत्यु हो तो पहले के दस दिन के अतिरिक्त दो दिन तक का ही सूतक लगेगा।
यानी कि अगर दसवें दिन के चौथे प्रहर तक में भी परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो तीन दिनों का अतिरिक्त सूतक रहेगा किंतु, क्रिया कर्म करने वाले व्यक्ति के लिए यह सूतक पूरे 10 दिनों के लिए ही मान्य रहता है और वहीं, कुल के अन्य सदस्य सूतक दोष से मुक्त हो जाते हैं।
एक और बात याद रखें कि अगर पिता की मृत्यु के पश्चात 10 दिनों के अंदर माता की भी मृत्यु हो जाए तो सूतक डेढ़ दिनों के लिए और बढ़ जाता है। और वहीं, अगर माता की मृत्यु के 10 दिनों के अंतराल में पिता की भी मृत्यु हो जाए तो पिता के मृत्यु के दिनों से पूरे 10 दिनों तक सूतक काल माना जाएगा।
सूतक काल से जुड़ी इन बातों का रखें ध्यान –
किसी भी कारण से जब मृत्यु दिवस के दिन कोई दाह संस्कार नहीं हो पाता है पर तब भी मृत्यु दिवस के दिन से ही सूतक काल को गिना जाएगा। ध्यान रहे कि अग्निहोत्र करने वालों के लिए सूतक काल दस दिनों तक के लिए ही माना जाता है। यदि कन्या का विवाह हो जाता है।
उसके पश्चात माता पिता की मृत्यु हो तो विवाहिता स्त्री के लिए तीन दिन का सूतक माने जाने की परंपरा है। वहीं, मृत्यु के पश्चात जब तक घर में शव रहे तब तक वहां उपस्थित सभी गोत्र के लोगों को सूतक का दोष लगता है। और तो और कोई भी व्यक्ति किसी और जाति के व्यक्ति को कंधा देता है या उसके घर में रहता है, वहां भोजन करता है तो उसके लिए भी सूतक काल दस दिनों तक के लिए मान्य होगा।
एक और बात अगर कोई भी व्यक्ति सिर्फ शव को कंधा देने के लिए मौजूद होते हैं तो उनके लिए सूतक काल एक दिन के लिए ही मान्य माना जाता है। दाह संस्कार अगर दिन के समय ही संपन्न हो जाए तो शव यात्रा में शामिल होने वाले लोगों को सूर्यास्त के पश्चात सूतक दोष नहीं लगता।
वहीं, रात्रि में दाह संस्कार होने पर सूर्योदय से पूर्व तक सूतक दोष रहता है। बताते चलें कि सूतक काल में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य तथा परिवार के सदस्यों के लिए श्रृंगार आदि करना वर्जित कहा गया है।