आला रे आला… गणपति बप्पा आला… आप समझ गए होंगे की हमारा यह खास लेख किनके बारे में हैं… जी हां, आज हम बात करने जा रहे हैं, गणपति बप्पा के बारे में… गणेश चतुर्थी का महान पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाएगा। दरअसल, कहते हैं कि गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में जन्म हुआ था और बस इसलिए भी चतुर्थी मुख्य गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी भी कहलाती है। बता दें कि कई जगह यह पर्व यह कलंक चतुर्थी के नाम से भी जानी जाती है और लोक परम्परानुसार इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।
बात अगर हिंदू पंचाग की करें तो गणेश चतुर्थी का पर्व 10 सितंबर, 2021 यानि कि शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। पूरे 11 दिन तक चलने वाले इस पर्व को देशभर में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन 11 दिनों में भगवान गणेश के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व खासतौर से महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में भी मनाया जाता है।
यह एक ऐसा पर्व होता है जब लोग अपने घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और अन्नत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन भी करते हैं।
गणेश चतुर्थी का क्या है शुभ मुहूर्त –
शुभ मुहूर्त जानने से पहले ध्यान रखें इन दो खास बातों का –
• गणेश चतुर्थी वह पर्व है जब मध्याह्न के समय मौजूद (मध्यान्हव्यापिनी) चतुर्थी ली जाती है।
• और हां, इस दिन अगर रविवार या फिर मंगलवार पड़ता है तो यह महा-चतुर्थी हो जाती है।
गणेश पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त : 11:03:03 से 13:32:58 तक
अवधि : 2 घंटे 29 मिनट
समय जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है : 09:11:59 से 20:52:59 तक
गणेश चतुर्थी को क्यों कहा जाता है कलंक चतुर्थी –
ऐसी मान्यता है कि जो भी इंसान गणेश चतुर्थी के दिन चांद के दर्शन करता है, उस पर कलंक लग जाता है और इसलिए इसे कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है।
दरअसल, विष्णु पुराण में एक कथा है जिसमें बताया गया है कि एक बार श्रीकृष्ण ने चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लिया था, तो उनपर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप भी लगा था।
आज वेद संसार आपको विस्तार से बताएगा कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद को देखना अशुभ क्यों माना जाता है –
इसके पीछे की कथा भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप देने की है… जी हां, कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश कहीं से भोजन करके आ रहे था, तभी उन्हें रास्ते में चंद्रमा मिले और गणपति जी की बड़े उदार को देखकर खूब हंसने लगे… भगवान गणेश को चंद्रमा का यूं उनका मजाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा, वह बहुत क्रोधित हो गए और उनको श्राप दे दिया कि तुमको अपने रूप पर इतना अहंकार है, इसलिए मैं तुमको क्षय होने का श्राप देता हूं। फिर क्या भगवान गणेश की श्राप के कारण चंद्रमा और उसका तेज हर दिन क्षय होने लगा और मृत्यु की ओर बढ़ने लगा…
चंद्रमा ने देवताओं से बात की तो उन्होंने उसे भगवान शिव की अराधना व तपस्या करने की बात कही… चंद्रदेव की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने चंद्रमा को अपने सिर पर बैठा लिया और उन्हें मृत्यु से बचा लिया। इसी जगह पर भगवान शिव चंद्रमा की प्रार्थना पर ज्योर्तिलिंग रूप में पहली बार प्रकट हुए थे और सोमनाथ कहलाए गए थे।
चंद्रमा ने अपने अंहकार की भगवान गणेश से क्षमा मांगी और तब गणपति बप्पा ने उनको क्षमा कर दिया पर कहा कि मैं आपका श्राप तो खत्म नहीं कर सकता हूं… लेकिन आप हर दिन क्षय होंगे और फिर 15 दिन बाद बढ़ने लगेंगे और पूर्ण हो जाएंगे। आपको हर कोई देख सकेगा पर भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन जो भी आपके दर्शन करेगा, उसको झूठा कलंक लगेगा।
तो दोस्तों, अब आप समझ गए होंगे कि आखीर क्यों इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने की मनाही होती है।
वेद संसार की पूरी टीम की ओर से आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं!!!